Rath Yatra Jagannath Puri 2025:
क्या आपको पता है कि भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के पहले क्या होता है? क्या है वहां मौजूद स्वर्ण कुएं की कहानी? भगवान के स्नान में इस्तेमाल हुए सोने के घड़ों का क्या होता है? नमस्कार, आज मैं जगन्नाथ यात्रा से जुड़े कुछ ऐसे तथ्य बताने वाली हूं जिन्हें जानकर आप हैरान रह जाएंगे। ओसा स्थित जगन्नाथ पुरी को देश के चार धामों में से एक माना जाता है। यहीं भगवान जगन्नाथ अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलभ्रथ के साथ विराजमान है। 11 जून 2025 को भगवान जगन्नाथ को स्नान कराया जाएगा।इस दौरान सबसे पहले स्वर्ण कुआं निगरानी करने वाले सेवादार की मौजूदगी में खोला जाएगा।
भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभ्रद, बहन सुभद्रा और सुदर्शन को सोने के 108 घड़ों से स्नान करवाया जाएगा। स्नान की प्रक्रिया जानने से पहले वहां मौजूद कुएं का रहस्य जानते हैं जिसके जल से भगवान का स्नान संपन्न होता है। स्कंद पुराण के अनुसार पांड्य राजा इंद्रदुम ने कुएं के अंदर सोने की ईंटें लगवाई थी। मंदिर के पुजारियों का कहना है कि इस कुएं में कई तीर्थों का जल है। सीमेंट और लोहे से बना इसका ढक्कन करीब डेढ़ से दो टन का है जिसे 12 से 15 सेवक मिलकर एक साथ हटाते हैं।
अब जानते हैं कि कैसे होता है यह अनुष्ठान?
क्या है पूरी प्रक्रिया और इस दौरान क्या किया जाता है? सबसे पहले भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को मंदिर के गर्भ गृह से बाहर स्नान मंडप तक लाया जाता है। इस दौरान विशेष मंत्रों का जाप होता है और आहुतियां दी जाती हैं। गौर करने की बात यह है कि स्नान के लिए 108 घड़ों का उपयोग होता है। जिनमें फूल, चंदन, केसर, कस्तूरी जैसे सुगंधित पदार्थ और कई तरह की औषधियां मिलाई जाती हैं। स्नान मंडप में तीन बड़े चौकियों पर सभी को विराजित किया जाता है। उन पर कई तरह के सूती कपड़े लपेटे जाते हैं ताकि उनकी लकड़ी की काया पानी से बची रहे। फिर भगवान जगन्नाथ को 35, बलभद्र जी को 33 और सुभद्रा जी को 22 घड़ों से नहलाया जाता है। बचे हुए 18 घड़े सुदर्शन जी पर चढ़ाए जाते हैं। जगन्नाथ की स्नान यात्रा में इस्तेमाल होने वाले स्वर्ण घड़ों को फिर से मंदिर के भीतर सुरक्षित स्थान पर रख दिया जाता है।
स्नान के बाद भगवान जगन्नाथ और बलभद्र को हाथी का वेश पहनाया जाता है। जबकि सुभद्रा को कमल के फूल की पोशाक पहनाई जाती है। अब जानते हैं कि इस परंपरा की शुरुआत कब हुई। स्कंद पुराण के अनुसार पूरी के जगन्नाथ मंदिर में राजा इंद्रदुम ने भगवान की लकड़ी की प्रतिमाएं स्थापित की थी। 12वीं शताब्दी से इस मंदिर में भगवान की पूजा करने से पहले उन्हें स्नान कराने की परंपरा है। मान्यता है कि स्नान के बाद भगवान को बुखार आ जाता है और वह 15 दिनों तक विश्राम करते हैं। इस दौरान केवल प्रमुख सेवक और वैद्य ही भगवान के दर्शन कर सकते हैं। 15 दिन के बाद भगवान स्वस्थ होकर बाहर आते हैं और भक्तों को दर्शन देते हैं। इसके बाद रथ यात्रा पर निकल जाते हैं। भारत की संस्कृति और सभ्यता में ऐसी कई पौराणिक कथाएं हैं जिन्हें सुनकर और उन्हें जानकर आप दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर हो जाएंगे।
धन्यवाद।